1.
प्रार्थना
भगवती भारती मैया कृपा पाने को धाये हैं ।
सरस्वती माँ कृपा करदो तुम्हारे द्वार आये
हैं । ।
सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा धरा पुष्टी प्रभा
गौरी ।
धृती मेधा व तुष्टी माँ ये पूजा थाल लाये हैं
। ।1।।
जुबां पे बैठ के माता तुने ही दुष्ट तारे
हैं ।
कृपा पाने को जगदम्बे आस आँचल पसारे हैं ।
।2।।
विद्या बुद्धि बल संतान देने वाली हे माता ।
सुख शांति से जीने की लेकर आस आये हैं । ।3। ।
Jherh
fcUnw jRukdj pkScs
|
lh-14@3 fjQk;ujh vkoklh; ifjlj chuk]e-iz-2-
2-
कविता-
सात साल की बिटिया बोली ...
एक दो तीन चीन! सावधान बस इतना समझाऊँगी ा
माने न तो बासठ का बदला इस बार मैं चुकाऊँगीाा
माने न तो बासठ का बदला इस बार मैं चुकाऊँगीाा
बाज नहीं आया तो पाक भी हड़प
करूँ ा
जर्मन जापान को जलपान मैं कर जाऊँगी ाा
जर्मन जापान को जलपान मैं कर जाऊँगी ाा
सरहद हो बंग्लादेश की, पाक या नेपाल की ा
सारे घुसपैठियों को चुन-चुन के जन्नत पहुँचाऊँगीाा
सारे घुसपैठियों को चुन-चुन के जन्नत पहुँचाऊँगीाा
इटली की पसली तोड़ फ्रांस को
मिला के फूस ा
लंदन की तो डंडन से धज्जियाँ उड़ाऊँगी ाा
लंदन की तो डंडन से धज्जियाँ उड़ाऊँगी ाा
अमेरिका को जीतना है बचा
घड़ी का खेल ा
अँग्रेजों की अकड़ तो सब जग से मिटाऊँगी ाा
अँग्रेजों की अकड़ तो सब जग से मिटाऊँगी ाा
शिक्षा तकनीकि से भारत को
विश्वगुरु ा
दुनियाँ का सिरमौर अनुपम बनाऊँगी ाा
दुनियाँ का सिरमौर अनुपम बनाऊँगी ाा
इन्कलाब ज़िन्दाबाद माँ
भारती की शपथ ले ा
दुष्ट हेतु दुर्गा भवानी बन जाऊँगी ाा
दुष्ट हेतु दुर्गा भवानी बन जाऊँगी ाा
बिन्दु बिन्दु रत्नाकर ना
किया वसुन्धरे तो ा
भारत त्रिपुण्ड की ना तनया कहलाऊँगी ाा
भारत त्रिपुण्ड की ना तनया कहलाऊँगी ाा
देश की अखण्डता आन बान शान
हित ा
ज्ञानविज्ञान का ऋतम्भरा मैं परचम फहराऊँगी ाा
ज्ञानविज्ञान का ऋतम्भरा मैं परचम फहराऊँगी ाा
_ ऋतंभरा [कक्षा – दूसरी]
डी.ए.वी. बी.ओ.आर.एल. पब्लिक स्कूल बीना
3.
कविता -
सरल गौरवगान
आओ मित्रों तुम्हें सुनाएँ कीर्ति कवि महान की ।
राष्ट्रधर्म
का पाठ पढ़ाएँ गाथाएँ बलिदान की । ।
दुनियाँ ने दफनाए जिनको उनको भी सम्मान दिया ।
वर्तमान के वेदव्यास ने तन मन धन बलिदान किया । ।
देशभक्त और देसी भाषा हिन्दी का उद्धार किया । ।
रत्नाकर सा गहरा चिंतन हर अलंकरण को मात दिया । ।
कविकुलभूषण श्री सरल के अनुपम गौरवगान की ।
राष्ट्रधर्म
का पाठ पढ़ाएँ गाथाएँ बलिदान की । । 1 । ।
शुद्ध स्वदेशी भाषा वेश पूर्ण स्वदेसी कृति परिवेश ।
सार्द्धशती पुस्तक लिख डाली सभी स्वदेसी रहे अनेक । ।
अतिविशालतम महाकाव्य के लेखक सरल सुजान की ।
राष्ट्रधर्म
का पाठ पढ़ाएँ गाथाएँ बलिदान की । । 2 । ।
हे नक्षत्र दैदीप्यमान तुम काव्यागगन साहित्याकाश के ।
कभी भगत आज़ाद कभी कभी निराला पथिक प्रसाद के।।
ऋणी रहेगा सारा कविकुल हिंदीहित में निरत प्रकाश के ।
राष्ट्रभक्ति और देश की सेवा वाली भावना के विकाश के ।
।
श्री कृष्ण जी सरल मांगता है त्रिपुंड तव यशोगान की ।
राष्ट्रधर्म
का पाठ पढ़ाएँ गाथाएँ बलिदान की । । 3 । ।
& MkW- vkj ] lh ] f=iq.M
vk;Z Hkkjr dYpjy Mkbl ,.M bZdks fQYEl chuk]e-iz-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें